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ठंड के मौसम में पशुपालन कैसे करें ?

ठंड के मौसम में पशुपालन

ठंड के मौसम में पशुपालन ठंड के मौसम में पशुपालन करते समय पशुओं की देखभाल बहुत ही सावधानी और उचित तरीके से करनी चाहिये। ठंढ  में  मौसम में होने वाले परिवर्तन से पशुओं पर बुरा प्रभाव पड़ता है, ऐसे में ठंढ के मौसम में पशुपालन करते समय पशु प्रबंधन ठीक न होने पर मवेशियों को ठण्ड से खतरा पहुंचेगा।ठंड के मौसम में पशुओं की दूध देने की क्षमता शिखर पर होती है तथा दूध की मांग भी बढ़ जाती है अगर दुधारू पशुओं की विशेष देखभाल नहीं की गई तो दूध कम कर देंगे।सर्दी के मौसम में  पशुओं के रहन-सहन और आहार का ठीक प्रकार से प्रबंध नहीं किया गया तो ऐसे मौसम में पशु के स्वास्थ्य व दुग्ध उत्पादन की क्षमता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है

आइये अब हम विस्तृत रूप से चर्चा करें की ठंढ के मौसम में पशुपालन उचित ढंग से कैसे करेंगें , ठंढ के मौसम में पशुपालन करते समय निम्नांकित बिंदुओं पर अवश्य ध्यान दें :

१. ठंढ के मौसम में पशुओं आहार एवं जल प्रबन्धन

२. ठंढ के मौसम में पशुओं आवास प्रबन्धन

३. ठंढ के मौसम में पशुओं का स्वस्थ प्रबंधन

१.ठंढ के मौसम में पशुओं आहार एवं जल प्रबन्धन : ठंड के मौसम में पशुपालन करते समय पशुपालक भाई अपने दुधारू पशुओं के आहार संतुलित रखें। पशुओं को ऊर्जा, प्रोटीन, खनिज तत्व, पानी, विटामिन व वसा आदि पोषक तत्वों से भरपूर आहार दिया करें । ठंड के मौसम में पशुओं को विशेष देखभाल की जरूरत होती है, ऐसे में पशुओं के खान-पान व दूध निकालने का समय नियत समय पर ही होनी चाहिए। ठंढ के मौसम में पशुपालन करते समय पशुओं का दूध नियमित रखने के लिए और उनका दूध बढ़ाने के लिए आप ग्रोवेल का मिल्क बूस्टर Growel’ Milk Booster) प्रयोग कर सकतें हैं ,यह काफी प्रभावकारी दवा है ।मिल्क बूस्टर Growel’ Milk Booster)  ना केवल दुग्ध और दुग्ध के गुणवत्ता को बढ़ता है बल्कि पशुओं को स्वस्थ रखने में भी मदद करता हैं ।

ठंढ के मौसम में पशुओं को कभी भी ठंडा चारा व दाना नहीं देना चाहिए क्योंकि इससे पशुओं को ठंड लग जाती है। पशुओं को ठंड से बचाव के लिए पशुओं को हरा चारा व मुख्य चारा एक से तीन के अनुपात में मिलाकर खिलाना चाहिए।ठंडे वातावरण में पशुओं को अपने शरीर के तापमान को बनाए रखने के लिए अतिरिक्त ऊर्जा की आवश्यकता होती है। ऊर्जा की कमी के कारण ठंड के मौसम में जानवर का शरीर कांपता है ,बीमारी और ठंढ लगने का खतरा रहता है ।ठंड के समय पशुओं के भोजन में ऊर्जा का स्रोत बढ़ाएं जिससे दुधारू गाय और भैंसों को ठंड और बीमारी से बचाया जा सके।ठंढ के मौसम में दुधारू पशुओं को सोयाबीन और बिनौला अधिक मात्रा में खिलाना चाहिए। बिनौला दूध के अंदर चिकनाई की मात्रा बढ़ाता है।अगर सोयाबिन उपलब्ध नहीं हो तो उसके जगह अमीनो पॉवर फीड प्रीमिक्स Amino Power – Feed Premix भी दें सकतें हैं।

पशुओं को सर्दी के मौसम में गुनगुना,ताजा व स्वच्छ पानी भरपूर मात्रा में पिलाएं, क्योंकि पानी से ही दूध बनता है और सारी शारीरिक प्रक्रियाओं में पानी का अहम योगदान रहता है। ठंढ के दिनों में पशुओं के पीने का पानी अक्सर अधिक ठंडा होता है, जिसे पशु कम मात्रा में पीते हैं। इसलिए यह ध्यान रखा जाए कि पानी का तापमान बहुत कम न हो। सामान्यतः पशु १५-२० सेंटीग्रेड पानी के तापमान को अधिक पसंद करते हैं। इसके अलावा पशुओं को धूप निकलने पर पशुओं को बाहर बांधे और दिन गर्म होने पर नहलाकर सरसों के तेल की मालिश करे।

२.ठंढ के मौसम में पशुओं आवास प्रबन्धन : ठंढ के मौसम में पशुपालन करते समय ,पशुओं के आवास प्रबंधन पर विशेष ध्यान दें। पशुशाला के दरवाजे व खिड़कियों पर बोरे लगाकर सुरक्षित करें। जहां पशु विश्राम करते हैं वहां पुआल, भूसा, पेड़ों की पत्तियां बिछाना जरूरी है। ठंड में ठंडी हवा से बचाव के लिए पशुशाला के खिड़कियों, दरवाजे तथा अन्य खुली जगहों पर बोरी टांग दें। पशुशाला में तिरपाल, पौलिथिन शीट या टाट/पर्दा का प्रयोग करके पशुओं को तेज हवा से बचाया जा सकता है।

सर्दी में पशुओं को सुबह नौ बजे से पहले और शाम को पांच बजे के बाद पशुशाला से बाहर न निकालें। ठंढ के मौसम में अंदर व बाहर के तापमान में अच्छा खासा अंतर होता है। पशु के शरीर का सामान्य तापमान विशेष तौर से गाय व भैंस का क्रमश: १०१ .५ डिग्री फार्नहाइट व ९८.३ -१०३ डिग्री फार्नहाइट (सर्दी-गर्मी) रहता है और इसक विपरीत पशुघर के बाहर का तापमान कभी-कभी शून्य तक चला जाता जाता है। अत: इस ठंढ से पशु को बचाने के लिए पशु का बिछावन की मोटाई, खिड़कियों पर बोरी व टाट के पर्दे आदि पर विशेष ध्यान देना चाहिए। जिससे पशुओं पर शीत लहर का सीधे प्रकोप न पड़ सके। ठंढ में धुंध व बारिश के कारण अक्सर पशुओं के बाड़ों के फर्श गीले रहते हैं जिससे पशु ठंढे में बैठने से कतराते हैं, अतः फर्श को सूखा रखना बेहद ही जरुरी है ।इस मौसम में अच्छी गुणवत्ता का बिछावन तैयार करें, जो की कम से कम छह इंच मोटा हो और इस बिछावन को प्रतिदिन बदलने की भी आवश्यकता होती है रेत या मैट्रेस्स का बिछावन पशुओं के लिए सर्वोत्तम माना गया है क्योंकि इसमें पशु दिनभर में १२-१४ घंटे से अधिक आराम करते हैं, जिससे पशुओं की उर्जा क्षय कम होती है।

नवजात पशुओं एवं बढ़ते बछड़े-बछड़ियों को सर्दी व शीत लहर से बचाव की विशेष आवश्यकता होती है। इन्हें रात के समय बंद कमरे या चारो ओर से बंद शेड के अंदर रखना चाहिए लेकिन प्रवेशद्वार का पर्दा/दरवाजा हल्का खुला रखें जिससे कि हवा आ जा सके। इस बात का ध्यान रखें कि छोटे बच्चों के बाड़ों के अन्दर का तापमान ७०-८० सेंटीग्रेड से कम न हो। यदि आवश्यक समझें, तो रात के समय इन शेडों में हीटर का प्रयोग भी किया जा सकता है। बछड़े-बछड़ियों को दिन के समय बाहर धुप में रखना चाहिए तथा कुछ समय के लिए उन्हें खुला छोड़ दें, ताकि वे दौड़-भाग कर स्फ्रुतिवान हो जाएँ।

बहुत सारे पशुपालक सर्दियों में रात के समय अपने पशुओं को बंद कमरे में बांध का रखते हैं और सभी दरवाजे खिड़कियों बंद कर देते हैं, जिससे कमरे के अंदर का तापमान काफी बढ़ जाता है और कई दूषित गैसें भी इकट्ठी हो जाती है,जो पशुओं के स्वास्थ्य को प्रभावित करती है। अतः ध्यान रखें कि दरवाजे-खिड़कियाँ पूर्णतः बंद न हो।कुछ पशुपालक भाई पशुघर को चारों तरफ से ढक कर रखतें हैं इससे अधिक नमी बनती है, जिससे रोग जनक कीटाणुओं की संक्रमण की संभावना होती है।

ठंढ के मौसम में पशुघर /पशुओं के बाड़े के साफ सफाई का विशेष ध्यान रखें , पशुघर में पानी नहीं जमने दें और पशुघर को हमेशा सूखा रखें। पशुघर के अन्दर और बाहर नियमित रूप से विराक्लीन (Viraclean) छिड़काव करें और पशुओं के नाद को भी इसके घोल से धोते रहें ।

३.ठंढ के मौसम में पशुओं का स्वस्थ प्रबंधन:

कड़ी सर्दी के कारण इन दिनों पशु विभिन्न रोगों से ग्रसित हो जातें हैं । इसलिए पशुओं से अधिक उत्पादन व अच्छे प्रजनन क्षमता बनाये रखने के लिए सर्दी के मौसम में पशुओं के रख-रखाव के तथा बीमारी के इलाज हेतु कुछ विशेष उपाय किये जाने को आवश्यकता होती है, जिनका उल्लेख निम्नांकित बिंदुओं में किया गया है।

पशुओं में अफारा: ठंढ के मौसम में पशुपालन करते समय पशुओं को जरूरत से ज्यादा दलहनी हरा चारा जैसे बरसीम व अधिक मात्रा में अन्न व आटा, बचा हुआ बासी भोजन खिलाने के कारण यह रोग होता है। इसमें जानवर के पेट में गैस बन जाती है और बायीं कोख फूल जाती है। रोग ग्रस्त होने पर आप ग्रोवेल का ग्रोलिव फोर्ट (Growlive Forte) दें, इस दवा को पिलाने पर तुरंत लाभ होता है।

पशुओं में निमोनिया: दूषित वातावरण व बंद कमरे में पशुओं को रखने के कारण तथा संक्रमण से यह रोग होता है। रोग ग्रसित पशुओं की आंख व नाक से पानी गिरने लगता है। उपचार के लिए ग्रोवेल का ग्रोविट- ए (Growvit – A) देने से भी काफी आराम मिलता है , इस दवा को देने से अन्य काफी फायदे भी हैं ।

सर्दी में वातावरण में नमी के कारण पशुओं में खुरपका, मुंहपका तथा गलाघोटू जैसी बीमारियों से बचाव के लिए समय पर टीकाकरण करें।

पशुओं में ठण्ड लगना: इससे प्रभावित पशु को नाक व आंख से पानी आना, भूख कम लगना, शरीर के रोंएं खड़े हो जाना आदि लक्षण आते हैं। उपचार के लिए एक बाल्टी खौलते पानी के ऊपर सूखी घास रख दें। रोगी पशु के चेहरे को बोरे या मोटे चादर से ऐसे ढ़के कि नाक व मुंह खुला रहे। फिर खौतले पानी भरे बाल्टी पर रखी घास पर तारपीन का तेल बूंद-बूंद कर गिराएं। भाप लगने से पशु को आराम मिलेगा। इसके अलावा आप ग्रोवेल का अमीनो पॉवर Amino Power दें । अमीनो पॉवर Amino Power ४६ तत्वों का एक अद्भुत दवा है ,जिसमें मुख्यतः सभी प्रोटीन्स,विटामिन्स और मिनरल्स मिला कर बनाया गया है । अमीनो पॉवर  Amino Power  न केवल पशुओं को ठंढ के मौसम में गर्मी प्रदान करता है बल्कि की किसी भी प्रोटीन्स,विटामिन्स और मिनरल्स की कमी की पूर्ति करता है और पशुओं को हस्ट -पुष्ठ रखता है और बिमारियों से काफी हद तक बचाव करता है ।

ठंड के मौसम में प्रायः पशुओं को दस्त की शिकायत होती है। पशुओं को दस्त होने पर ग्रोवेल का ग्रोलिव फोर्ट Growlive Forte दें और साथ में एलेक्ट्रल एनर्जी Electral Energy दें इस दवा को देने पर तुरंत लाभ होता है ।

यदि गायों को थनेला रोग हो तो, जिस थन में यह रोग हो उस थन का दूध बछड़ों को कभी पिलाना नहीं चाहिए।

शीतऋतु में मुर्गियों को श्वास संबंधी बीमारी से बचाने के लिए Respiratory Herbs – रेस्पिरेटरी हर्ब्स  दवा पशुओं को पानी में मिलाकर ७ से १० दिन तक देना चाहिए।

पशुओं को अधिक दूध लेने के लिए और खनिज -लवण की पूर्ति के लिए उन्हें मिनरल मिक्सचर चिलेटेड ग्रोमिन फोर्ट (Chelated Growmin Forte) १०० ग्राम प्रति दिन ,प्रति पशु चारे में मिला कर दें ।

ठंढ के मौसम में पशुपालन करते समय इन सभी बातों के अलावा निम्नांकित बातों का ध्यान रखें :

 पशुओं को खुली जगह में न रखें, ढके स्थानों में रखे।
 रोशनदान, दरवाजों व खिड़कियों को टाट और बोरे से ढंक दें।
 पशुशाला में गोबर और मूत्र निकास की उचित व्यवस्था करे ताकि जल जमाव न हो पाए।
 पशुशाला को नमी और सीलन से बचाएं और ऐसी व्यवस्था करें कि सूर्य की रोशनी पशुशाला में देर तक रहे।
 बासी पानी पशुओं को न पिलाए।
 बिछावन में पुआल का प्रयोग करें।
 पशुओं को जूट के बोरे को ऐसे पहनाएं जिससे वे खिसके नहीं।
 गर्मी के लिए पशुओं के पास अलाव जला के रखें।
 नवजात पशु को खीस जरूर पिलाएं, इससे बीमारी से लडऩे की क्षमता में वृद्धि होती है और नवजात पशुओं की बढ़ोतरी भी तेजी से होता है ।
 प्रसव के बाद मां को ठंडा पानी न पिलाकर गुनगुना पानी पिलाएं।
 गर्भित पशु का विशेष ध्यान रखें व प्रसव में जच्चा-बच्चा को ढके हुए स्थान में बिछावन पर रखकर ठंड से बचाव करें।
 बिछावन समय-समय पर बदलते रहे।
 अलाव जलाएं पर पशु की पहुंच से दूर रखें। इसके लिए पशु के गले की रस्सी छोटी बांधे ताकि पशु अलाव तक न पहुंच सके।
 ठंड से प्रभावित पशु के शरीर में कपकपी, बुखार के लक्षण होते हैं तो तत्काल निकटवर्ती पशु चिकित्सक को दिखाएं ।

 ठंड के मौसम में पशुओं की वैसे ही देखभाल करें जैसे हम लोग अपनी करते हैं। उनके खाने-पीने से लेकर उनके रहने के लिए अच्छा प्रबंध करे ताकि वो बीमार न पड़े और उनके दूध उत्पादन पर प्रभाव न पड़े। खासकर नवजात तथा छह माह तक के बच्चों का विशेष देखभाल करें।ठंढ के मौसम में पशुपालन करते समय पशुओं पर कुप्रभाव न पड़े और दूघ का उत्पादन न गिरे इसके लिए पशुपालकों को अपने पशुओं की देखभाल, ऊपर दिए निर्देशों के अनुसार करना बहुत जरूरी है।उपयुक्त बातों का ध्यान रखकर आप ठंढ के दिनों में पशुओं को स्वस्थ रख सकतें हैं और अधिक से अधिक दुग्ध का उत्पादन भी कर सकतें हैं ।

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