मुर्गियों में CRD मुख्यतः मुर्गियों में साँस की बीमारी है ।मुर्गियों में CRD का मुख्य कारण मइक्रोप्लाजमा गैलिसेप्टिकम नामक एक रोगजनक बैक्टीरिया है।पक्षियों में CRD एक ऐसी बीमारी जिससे ना केवल ब्रोइलर ,लेयर और ब्रीडर मुर्गीयाँ प्रभावित होतीं हैं बल्कि अन्य पक्षी जैसे की कबूतर ,बतख ,तीतर इत्यादि पक्षियाँ भी प्रभावित होतीं हैं।मुर्गियों में CRD का इलाज सही समय पर नहीं किया जाये तो मुर्गियों में और ढेर सारी बीमारियां भी हो जाती हैं ।तो आइये हम मुर्गियों में CRD के लक्षण , कारण और उपचार की विस्तृत रूप से चर्चा करें :
मुर्गियों में CRD की पहचान क्या है ?
१. अगर मुर्गियां में साँस लेते समय घरघराहट (घर्र -घर्र ) की आवाज आ रही है तो यह CRD के लक्षण है ।
२. अगर मुर्गियां में नाक और आँख से पानी आ रहा है या आँखों से झाग आ रहा है तो ये भी CRD का लक्षण है।
३. अगर मुर्गियां के आँखों में सूजन है तो ये भी एक CRD का लक्षण है।
४. अगर मुर्गियां तो देखने में डेढ़ या पौने दो किलो की लग रहीं हैं परन्तु उनका वजन करने पर वास्तिविक वजन बहुत कम है।
५. मुर्गियां बहुत ही सुस्त रहतीं हैं ,इतनी सुस्त की उन्हें सहारा देकर उठाना पड़ रहा हो या हाथ से हिला कर गिराना पड़ रहा हो ,ये भी मुर्गियों में CRD लक्षण है।
६. अगर अंडे देने वाली मुर्गियों में अंडे का उतपादन काफी कम हो गया हो तो ये भी पक्षियों में CRD का लक्षण है ।
७. पक्षियों वजन और विकास रुक गया हो तो भी उनमें पक्षियों में CRD का होने का अनुमान है ।
८. मुर्गियों को भूख कम लगना भी मुर्गियों में CRD होने का एक कारण हो सकता है ।
९. मुर्गियों में लंगड़ापन भी मुर्गियों में CRD के कारण हो सकता है ।
१०. मुर्गियों की बिछाली (फर्श पर बिछाये गये भूंसा-कुन्नि) का गिला होना और मुर्गीफार्म में धूल होना भी मुर्गियों में CRD कारण हो सकता है।
११. मुर्गियों की बिट का पतला हो जाना और हरे या लाल रंग का हो जाना ।
पक्षियों और मुर्गियों को CRD की बीमारी से कैसे बचायें ?
- पक्षियों और मुर्गियों को CRD की बीमारी से बचाने के लिये,सबसे महत्वपूर्ण है की हमेशा अच्छे और नामी हैचरी के चूजें लें क्युकी चूजें की क्वालिटी काफी हद तक मुर्गियों के स्वस्थ्य और आपके मुर्गीपालन ब्यवसाय में फायदे को प्रभावित करता है।
- बीमार मुर्गियों को स्वस्थ मुर्गियों से अलग कर दें क्युकी इन बीमार मुर्गियों से स्वास्थ्य मुर्गियों को भी बीमारी लगने का खतरा रहता है ।
- मुर्गीफार्म में दूसरे ब्यक्ति और जानवर को प्रवेश नहीं करने दें , अगर कोई ब्यक्ति को मुर्गीफार्म में जाना जरुरी है तो हाथ धोकर , मास्क लगा कर और फार्म में जाने के चप्पल पहन कर ही जाये । फार्म में जाने के लिए एक अलग चप्पल या जूता रखें ,बाहर के चप्पल या जूता पहन कर फार्म में ना आप खुद प्रवेश करें या दूसरे को प्रवेश करने दे।
- बिछाली को सूखा रखें और मुर्गीफार्म में धूल नहीं होने दें , मुर्गीफार्म को हवादार रखें ।
बायोसिक्युरिटी की नियमों का पालन :
पक्षियों और मुर्गियों को CRD की बीमारी से बचाने की सबसे महत्वपूर्ण उपाय है हम बायोसिक्युरिटी की नियमों का पालन करें यानि की साफ-सफाई का ध्यान रखना।साफ-सफाई का ध्यान रखना मतलब केवल पक्षियों के फार्म -शेड का ही साफ -सफाई नहीं बल्कि उनके खाने के फीडर का उनके पानी पिने के ड्रिंकर का , उनके दाने का पक्षियों के पिने के पानी का साफ -सफाई।
मुर्गीपालन में आल इन आल आउट (All in All Out ) की पद्धति को अपनायें यानी की एक फार्म में सभी चूजे को एक ही बार डालें और बड़े हो जाने पर सभी मुर्गियों को एक ही बार बेच दें । इसका कारण यह है की CRD एक मुर्गियों से दूसरे मुर्गियों में फैलती है। अगर सभी मुर्गीयाँ एक ही बार नहीं बेचेंगे और जो मुर्गीयाँ आप नहीं बेचते हैं और उनमें CRD की बीमारी लग चुकी हैं तो जो आप नया चूजा डालेंगें उनमें भी CRD की बीमारी लग जायेगी।आल इन आल आउट (All in All Out) की पद्धति को अपनाने से ना केवल CRD की बीमारी से बचाव होगा बल्कि अन्य बहुत सारी मुर्गियों की बीमारियाँ लगने का खतरा कम हो जायेगी।
मुर्गी घर के बिछाली – यानि की फर्श बिछाये गये भूंसा-कुन्नि (Litter ) को बिल्कुल ही निकाल दें यानि फर्श बिछाये गये भूंसा (Litter ) बदल दें और नयें बिछाली- भूंसा-कुन्नि का प्रयोग करें । लेकिन नयें बिछाली- भूंसा-कुन्नि डालने से पहले फर्श को अछि तरह साफ़ कर लें और सूखने दें उसके बाद फर्श -दीवारों -पर्दों-दरवाजे पर और मुर्गी घर के बाहर काफी अच्छी तरह से डिसइंफेक्टेंट, विराक्लीन (Viraclean) अच्छी तरह से स्प्रे करें ।
मुर्गियों के पानी के ड्राम ,ड्रिंकर और फीडर को भी अच्छी तरह से धोकर -सूखा कर फिर विराक्लीन (Viraclean) के घोल से धो डालें ।
इस बात का ध्यान रखें मुर्गियों के बेचने बाद फार्म की साफ -सफाई करने के पंद्रह (१५ दिनों ) के बाद ही नये चूजें डालें ।इन पंद्रह दिनों तक हर ३-४ दिनों के अंतराल पर खाली फार्म में विराक्लीन का (Viraclean) स्प्रे करतें रहें । नयें चूजें भी जब फार्म में आ जायें तब भी फार्म में हर २-३ दिनों के अंतराल पर विराक्लीन (Viraclean) का स्प्रे फर्श पर के बिछाली -दीवारों -पर्दों-दरवाजे और फार्म के आस-पास नियमित रूप से करतें रहें ।
विराक्लीन (Viraclean ) आखिर है क्या ?
विराक्लीन (Viraclean) एक विश्वविख्यात डिसइंफेक्टेंट है जो मुर्गी के फार्म के बिसाणुओं और बैक्टीरिया मार देता है- ख़त्म कर देता है और मुर्गियों और पक्षियों को ना केवल CRD की बीमारी से बल्कि बहुत सारी बिमारियों से बचाता है ।विराक्लीन (Viraclean) सबसे उच्चस्तरीय और सबसे बेहतरीन गुणवत्ता वाला डिसइंफेक्टेंट है जोकि गारंटीड रिजल्ट देता है ।
मुर्गियों में बीमारी होने का एक बहुत बड़ा कारण पानी की गुणवत्ता भी है , अतः मुर्गियों को पिने की पानी हमेशा बैक्टीरिया और बिसाणुओं से मुक्त हो ।
मुर्गियों की पिने की पानी को बैक्टीरिया और बिसाणुओं से मुक्त करने हेतु आप मुर्गियों की पिने के पानी में हमेशा एक्वाक्योर (Aquacure) मिलाकर दें यह पानी में मौजूद बैक्टीरिया , बिसाणुओं और खारापन को खत्म कर पानी को शुद्ध कर देता है ।पानी में एक्वाक्योर (Aquacure) मिला देने पर ना केवल मुर्गियों और पक्षियों में बीमारी की दर कम हो जाता बल्कि मुर्गियों की पाचन प्रक्रिया भी सुदृढ़ हो जाती है ।
अगर मुर्गियों में CRD की बीमारी हो जाये तो क्या करें ?
मुर्गियों में CRD की बीमारी हो जाने पर CRD की एक अचूक और विश्वप्रसिद्ध दवा है सिप्रोकोलेन (Ciprocolen) इस दवा को १०० मुर्गियों पर ५ मिलीलीटर मुर्गियों के पिने के पानी में मिलाकर सुबह में दें । सिप्रोकोलेन (Ciprocolen) पानी के साथ देते समय इस बात का ख्याल रखें की पानी उतना ही मिलाये की मुर्गियां एक घंटे में सिप्रोकोलेन (Ciprocolen) मिले पानी पी जायें ।सिप्रोकोलेन (Ciprocolen ) तब तक दें जब तक की CRD पूरी तरह से छूट ना जाये ।इसका भी ध्यान रखें की मुर्गियों की पिने की पानी शुद्ध और और बैक्टेरिया मुक्त हो ,इसके लिए पानी में नियमित रूप से एक्वाक्योर (Aquacure) मिलायें । आप ये दवायें निचे लिखे लिंक पर जा कर ऑनलाइन खरीद सकतें हैं । मुर्गीपालन से सम्बंधित कृपया आप इस लेख को भी पढ़ें मुर्गीपालन में बायोसिक्योरिटी
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